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Thursday, November 24, 2011

kuch aisi hai zindagi

कुछ ऐसी है ज़िन्दगी |

अरमानो के समुन्दर में
अक्सर ये तलाशे थे ,
हकीकत की डोर जिससे
सच्चाई से नाता बना रहे ,
और खोजे थे ज़िन्दगी का मतलब
और उसमे छिपी गुफ्तगू |

आरज़ू के सिलसिले
पतंगों की तरह उड़ान भरे ,
असलियत से रूबरू होने पर ही
मुश्किलों के लम्हों में ही ,
पायी ज़िन्दगी की गूँज
और मिला इस जुस्तजू को अंजाम |

सपनो से ही बनती है
ज़िन्दगी जीने की राह ,
ज़िन्दगी से ही मिलती है
ख्वाबों को पहचान ,
और उस राह पे चलने से
आरज़ू को अंजाम |

6 comments:

perceptions.a.b. said...

pehla hindi poem that i'm blogging !! :)

navalkishoreb said...

mujhe kehna toh nahi chahiye....but i think kuch grammatical mistakes hain....

perceptions.a.b. said...

ofcourse kehna chahiye.. :P
i hope they are corrected now.. :)

Saru Singhal said...

Very profound, great poem!

Unknown said...

if i may " Zindagi ke har anjaam me hai ek nayi shuruwat... kuch aisi hi shuruwato me chupe hai aasmano ke raaz.. kuch aise raazo ki haqiqat se guftgu karti hai aapki ye panktiya.. kuch aisi hi panktiyo se hoti hai bayaan dil ke andaaz"

hope my comment is not too cheesy

perceptions.a.b. said...

eh, nice one.. gives a new dimension to the poem, shraddha!